मुंबई, 17 सितम्बर 2012: 13 सितम्बर 2012 का दिन सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं और सभी नागरिकों के लिए एक उत्सव का दिन है. क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने हमारे रास्ते की सबसे बड़ी बाधा को दूर कर दिया है, अर्थात केंद्रीय और राज्य सरकारों की सूचना आयुक्तों के रूप में सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति करने, यानी उन स्थानों में अपने स्वयं के व्यक्तियों को रखने की प्रवृत्ति को. न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने नमित शर्मा बनाम भारतीय संघ के मुक़दमे के ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सभी सूचना आयोगों को, एक अच्छी कानूनी पृष्ठभूमि वाले न्यायिक सदस्य के साथ व्यक्ति के साथ, द्वि-व्यक्ति बेंचों के रूप में कार्य करना आवश्यक है. राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिए, नियुक्ति से कम से कम तीन माह पहले विज्ञप्ति देने के बाद, और शेष प्रक्रिया का अनुपालन करने के बाद, सूचना आयुक्तों के उचित चयन के लिए नियम बनाना भी अनिवार्य कर दिया गया है.
इस अत्यंत दूरगामी फैसले में, उच्चतम न्यायालय ने स्वयं के अंतर्गत अर्धन्यायिक निकायों के रूप में सूचना आयोगों को स्वामित्व में लिया है, न कि नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति गृह के रूप में. "हम मानते हैं कि यह कानून का एक निर्विवाद प्रस्ताव है कि आयोग न्यायिक और अर्धन्यायिक प्रकृति के कार्यों को करता हुआ और न्यायालय से सम्बन्ध रखने वाला एक न्यायिक प्राधिकरण' है. यह एक महत्वपूर्ण दांता है. यह उन मंत्रिमंडलीय न्यायाधिकरण के विपरीत है, जो प्रशासन की प्रणाली से अधिक प्रभावित और नियंत्रित है और प्रशासन की मशीनरी के समान कार्य करता है,” ऐसा निर्णय में कहा गया है.
Translated into Hindi by Supriya Deshpande <honyakuremedies@gmail.com>
from English original http://tiny.cc/SC-Order-Info- Comm-Appt
आज सूचना प्राप्त करने वाले के लिए, सबसे बड़ा भय यह है कि सभी राज्यों में और केंद्र में अधिकांश सूचना आयुक्तों का स्वयं तक सीमित कानून है, ऐसे आदेश देते हैं जिनके कानूनी तर्क कमजोर होते हैं या फिर कोई तर्क नहीं होता. वे उन जनसूचना अधिकारियों से सख्त व्यवहार नहीं करते, जो लगातार जानकारी देने से मना करते हैं. सूचना आयुक्त स्पष्टत: ऐसे अतार्किक और अवैध द्वितीय-अपील आदेश जारी करते हैं जिससे सूचना प्राप्त करने वाले को किसी भी प्रकार की कोई राहत नहीं मिलती! इस प्रकार, सूचना का अधिकार अधिनियम, जो नागरिक को समय पर और सही सूचना की गारंटी देता है,असफल हो जाता है.
"इस निर्णय का एक प्रतिकूल परिणाम यह है कि सभी सूचना आयोगों ने कार्य बंद रखना होगा, जब तक कि न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो जाती. वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल की समाप्ति के बाद, कोई गैर-न्यायिक विशेषज्ञ कभी भी मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा. अतः इस फैसले से सभी सूचना आयोगों के सभी कार्यों में रूकावट की सम्भावना है, जब तक बेंच के गठन के लिए मापदंड पूरे नहीं हो जाते," सीएचआरआई के वेंकटेश नायक (nayak.venkatesh@gmail.com, ) ने टिप्पणी की. भय है कि सूचना आयोगों के कार्यों को कुछ महीनों के लिए एक पक्षघात (paralysis) हो जाएगा. "जब तक नई नियुक्तियां की जाती हैं, पीआईओ और एफएए खुशी से मामलों को स्थगित कर सकते हैं. सूचना का अधिकार अधिनियम के लिए, देश भर में अगले कई महीनों के लिए ऎसा रुख हो सकता है", वेंकटेश नायक लिखते हैं.
हालांकि, कुछ ही आरटीआई कार्यकर्ताओं ने वेंकटेश नायक की निराशा में साथ दिया है. RTIIndia.org, आरटीआई कार्यकर्ताओं की अग्रणी ऑनलाइन हब, के मुख्य सभापति सी जै करीरा (cjkarira@gmail.com, ) उत्साहित हैं. "यह बिलकुल वैसा ही आदेश है जिसके लिए देश भर में सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने प्रार्थना की है" करीरा भावविभोर होकर कहते हैं. "मुझे लगता है कि यह हमारे लिए शैंपेन की बोतलें खोलने और सड़कों में जश्न मनाने का समय है, क्योंकि किसी भी अस्थायी देरी के बावजूद, बुरे आदेशों के साथ आरटीआई अधिनियम को जानबूझकर तोड़मरोड़कर पेश करने वाले बाबुओं के दिन समाप्त हो गए है."
उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतिलिपि देखें जहां निर्देशों को हाईलाइट किया गया है: http://tiny.cc/SC-Judgment- CIC-SIC-Appt
आदेश में खूबसूरती से तर्क दिया गया है, और यह सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं के दिलों में अपार आनंद प्रदान करेगा.
मुख्य बिंदु :
1) यह निर्णय सूचना आयोगों के सदस्यों के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है.
2) सभी राज्यों में और केंद्र में, मुख्य सूचना आयुक्त का पद सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए आरक्षित हो जाएगा.
3) सभी बेंच द्वि-सदस्यीय- एक न्यायिक विशेषज्ञ और एक गैर- न्यायिक विशेषज्ञ होने चाहिए.
4) सरकार को नियुक्तियों की प्रक्रिया में भ्रम और मनमानेपन की स्थिति को हटाने के लिए कानून की धारा 12 और 15 में संशोधन करने की सलाह दी गयी है. वेंकटेश नायक लिखते हैं, "क़ानून में परिवर्तन की सलाह देना न्यायालय के लिए एक दुर्लभ बात है, लेकिन उन्होंने इस बार ऐसा किया है." उच्चतम न्यायालय ने कहा, "विधायिका के लिए अधिनियम की धाराओं12(5), 12(6) और 15(5), 15(6) के प्रावधानों में संशोधन करने की परम आवश्यकता है. हम देखते हैं और आशा करते हैं कि किसी भी अस्पष्टता या अव्यवहारिकता से बचने के लिए और इसे संवैधानिक जनादेश के अनुरूप बनाने के लिए इन प्रावधानों को विधायिका द्वारा जल्द से जल्द संशोधित किया जाएगा." वर्तमान में, अस्पष्टता को, राज्य सरकारों द्वारा नौकरशाहों और उनके चहेतों की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियां करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
5) सूचना आयुक्तों की मनमानीपूर्ण और अवैध आदेश जारी करने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए, न्यायालय ने कहा है सभी सूचना आयुक्त उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय और सूचना आयुक्तों की बड़ी बेंचों की तुलना में पूर्व-निर्णयों के सिद्धांत हेतु बाध्य हैं. वेंकटेश ने कहा "अच्छी बात यह है कि यह सिद्धांत समान शक्ति वाली बेंचों द्वारा दिए गए पूर्व निर्णयों का विस्तार नहीं करता".
6) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि केन्द्र सरकार और/या सक्षम प्राधिकारी को छह महीने की अवधि के भीतर सभी सूचना आयोगों को कानून के बुनियादी नियमों के अनुरूप और प्रभावी रूप से कार्यशील बनाने के लिए सभी अभ्यास और प्रक्रिया से संबंधित नियमों को तैयार करना करना चाहिए. "गैरकानूनी और असंवैधानिक आदेश, विभिन्न राज्यों और केन्द्र में अधिकतर आरटीआई अपीलकर्ताओं की एक समस्या है,” सी जै करीरा ने टिप्पणी की.
7) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (अर्थात अधिनियम 2005 की धारा 5 के अंतर्गत नामित किए जाने वाले वरिष्ठ अधिकारी) मुख्यतः कानून में एक डिग्री रखने वाले या कानून के क्षेत्र में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति होने चाहिए. "इस बात का निहितार्थ यह है कि प्रथम अपील के स्तर पर मनमाने ढंग से फैसले के दिन भी जल्द ही खत्म हो जायेंगे" कार्यकर्ता जीआर वोरा (grvora1@gmail.com, ) का ऐसा मानना है.
8) उच्चतम न्यायालय ने सभी सूचना आयोगों को अब से प्रत्येक दो सदस्यों की बेंच में कार्य करने का निर्देश दिया है. उनमें से एक न्यायिक सदस्य होना चाहिए, जबकि दूसरा एक' विशेषज्ञ सदस्य' होना चाहिए. न्यायिक सदस्य कानून में डिग्री रखने वाला, न्यायिक तौर पर प्रशिक्षित मस्तिष्क और न्यायिक कार्यों को करने के लिए अनुभव युक्त - वह व्यक्ति जो विज्ञापन की तिथि तक कम से कम बीस साल की अवधि के लिए कानून की प्रैक्टिस किया हुआ होना चाहिए. ऐसे वकीलों को सामाजिक कार्य का भी अनुभव होना चाहिए. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इस पद हेतु वरीयता दी जायेगी.
9) केंद्र या राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त केवल वह व्यक्ति होगा जो या तो उच्च न्यायालय या भारत के उच्चतम न्यायालय का एक न्यायाधीश है या रह चुका है.
इन पदों में से किसी के लिए भी न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की परामर्श पर की जायेगी, जो भी मामले में संभव हो.
10) दोनों स्तरों पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र के मामले में डीओपीटी और एक राज्य के मामले में संबंधित मंत्रालय द्वारा पैनल में शामिल व्यक्तियों के बीच से किया जाना चाहिए. पैनल को विज्ञापन से पूर्व और एक तर्कसंगत आधार पर तैयार किया जाता है जैसा कि पहले दर्ज में किया गया है.
11) उच्चतम न्यायालय ने अनिवार्य कर दिया है कि नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित करने की एक निष्पक्ष और पारदर्शी विधि अपनाई जानी चाहिए. चयन प्रक्रिया पद रिक्त होने से कम से कम तीन महीने पहले शुरू की जानी चाहिए.
आधार रेखा: आरटीआई कार्यकर्ताओं और जानकारी चाहने वालों के लिए एक अधिक दूरगामी और सकारात्मक विकास की कल्पना करना मुश्किल है!
कृष्णराज राव
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