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Tuesday, September 18, 2012

उच्चतम न्यायालय ने हमें सूचना आयुक्त की मनमानी से मुक्ति प्रदान कर दी है.


मुंबई, 17 सितम्बर 2012: 13 सितम्बर 2012 का दिन सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं और सभी नागरिकों के लिए एक उत्सव का दिन हैक्योंकि उच्चतम न्यायालय ने हमारे रास्ते की सबसे बड़ी बाधा को दूर कर दिया हैअर्थात केंद्रीय और राज्य सरकारों की सूचना आयुक्तों के रूप में सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति करनेयानी उन स्थानों में अपने स्वयं के व्यक्तियों को रखने की प्रवृत्ति कोन्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने नमित शर्मा बनाम भारतीय संघ के मुक़दमे के ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सभी सूचना आयोगों कोएक अच्छी कानूनी पृष्ठभूमि वाले न्यायिक सदस्य के साथ व्यक्ति के साथद्वि-व्यक्ति बेंचों के रूप में कार्य करना आश्यक हैराज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिएनियुक्ति से कम से कम तीन माह पहले विज्ञप्ति देने के बादऔर शेष प्रक्रिया का अनुपालन करने के बादसूचना आयुक्तों के उचित चयन के लिए नियम बनाना भी अनिवार्य कर दिया गया है.
इस अत्यंत दूरगामी फैसले मेंउच्चतम न्यायालय ने स्वयं के अंतर्गत अर्धन्यायिक निकायों के रूप में सूचना आयोगों को स्वामित्व में लिया हैन कि नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति गृह के रूप में"हम मानते हैं कि यह कानून का एक निर्विवाद प्रस्ताव है कि आयोग न्यायिक और अर्धन्यायिक प्रकृति के कार्यों को करता हुआ और न्यायालय से सम्बन्ध रखने वाला एक न्यायिक प्राधिकरणहैयह एक महत्वपूर्ण दांता हैयह उन मंत्रिमंडलीय न्यायाधिकरण के विपरीत हैजो प्रशासन की प्रणाली से अधिक प्रभावित और नियंत्रित है और प्रशासन की मशीनरी के समान कार्य करता है,” ऐसा निर्णय में कहा गया है.

Translated into Hindi by Supriya Deshpande <honyakuremedies@gmail.com>

आज सूचना प्राप्त करने वाले के लिएसबसे बड़ा भय यह है कि सभी राज्यों में और केंद्र में अधिकांश सूचना आयुक्तों का स्वयं तक सीमित कानून हैऐसे आदेश देते हैं जिनके कानूनी तर्क कमजोर होते हैं या फिर कोई तर्क नहीं होतावे उन जनसूचना अधिकारियों से सख्त व्यवहार नहीं करतेजो लगातार जानकारी देने से मना करते हैंसूचना आयुक्त स्पष्टतऐसे अतार्किक और अवैध द्वितीय-अपील आदेश जारी करते हैं जिससे सूचना प्राप्त करने वाले को किसी भी प्रकार की कोई राहत नहीं मिलतीइस प्रकारसूचना का अधिकार अधिनियमजो नागरिक को समय पर और सही सूचना की गारंटी देता है,असफल हो जाता है.
"इस निर्णय का एक प्रतिकूल परिणाम यह है कि सभी सूचना आयोगों ने कार्य बंद रखना होगाजब तक कि न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो जातीवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल की समाप्ति के बादकोई गैर-न्यायिक विशेषज्ञ कभी भी मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगाअतः इस फैसले से सभी सूचना आयोगों के सभी कार्यों में रूकावट की सम्भावना हैजब तक बेंच के गठन के लिए मापदंड पूरे नहीं हो जाते," सीएचआरआई के वेंकटेश नायक (nayak.venkatesh@gmail.com            9871050555      ने टिप्पणी कीभय है कि सूचना आयोगों के कार्यों को कुछ महीनों के लिए एक पक्षघात (paralysis) हो जाएगा"जब तक नई नियुक्तियां की जाती हैंपीआईओ और एफएए खुशी से मामलों को स्थगित कर सकते हैंसूचना का अधिकार अधिनियम के लिएदेश भर में अगले कई महीनों के लिए ऎसा रुख हो सकता है", वेंकटेश नायक लिखते हैं.

हालांकिकुछ ही आरटीआई कार्यकर्ताओं ने वेंकटेश नायक की निराशा में साथ दिया हैRTIIndia.org, आरटीआई कार्यकर्ताओं की अग्रणी ऑनलाइन हबके मुख्य सभापति सी जै करीरा (cjkarira@gmail.com            9848203583      ) उत्साहित हैं. "यह बिलकुल वैसा ही आदेश है जिसके लिए देश भर में सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने प्रार्थना की हैकरीरा भावविभोर होकर कहते हैं"मुझे लगता है कि यह हमारे लिए शैंपेन की बोतलें खोलने और सड़कों में जश्न मनाने का समय हैक्योंकि किसी भी अस्थायी देरी के बावजूदबुरे आदेशों के साथ आरटीआई अधिनियम को जानबूझकर तोड़मरोड़कर पेश करने वाले बाबुओं के दिन समाप्त हो गए है."

उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतिलिपि देखें जहां निर्देशों को हाईलाइट किया गया हैhttp://tiny.cc/SC-Judgment-CIC-SIC-Appt

आदेश में खूबसूरती से तर्क दिया गया हैऔर यह सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं के दिलों में अपार आनंद प्रदान करेगा.

मुख्य बिंदु :
1) यह निर्णय सूचना आयोगों के सदस्यों के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है.
2) सभी राज्यों में और केंद्र मेंमुख्य सूचना आयुक्त का पद सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए आरक्षित हो जाएगा.
3) सभी बेंच द्वि-सदस्यीयएक न्यायिक विशेषज्ञ और एक गैरन्यायिक विशेषज्ञ होने चाहिए.
4) सरकार को नियुक्तियों की प्रक्रिया में भ्रम और मनमानेपन की स्थिति को हटाने के लिए कानून की धारा 12 और 15 में संशोधन करने की सलाह दी गयी हैवेंकटेश नायक लिखते हैं, "क़ानून में परिवर्तन की सलाह देना न्यायालय के लिए एक दुर्लभ बात हैलेकिन उन्होंने इस बार ऐसा किया है.उच्चतम न्यायालय ने कहा, "विधायिका के लिए अधिनियम की धाराओं12(5), 12(6) और 15(5), 15(6) के प्रावधानों में संशोधन करने की परम आवश्यकता हैहम देखते हैं और आशा करते हैं कि किसी भी अस्पष्टता या अव्यवहारिकता से बचने के लिए और इसे संवैधानिक जनादेश के अनुरूप बनाने के लिए इन प्रावधानों को विधायिका द्वारा जल्द से जल्द संशोधित किया जाएगा.वर्तमान मेंअस्पष्टता कोराज्य सरकारों द्वारा नौकरशाहों और उनके चहेतों की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियां करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
5) सूचना आयुक्तों की मनमानीपूर्ण और अवैध आदेश जारी करने की प्रवृत्ति से निपटने के लिएन्यायालय ने कहा है सभी सूचना आयुक्त उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय और सूचना आयुक्तों की बड़ी बेंचों की तुलना में पूर्व-निर्णयों के सिद्धांत हेतु बाध्य हैंवेंकटेश ने कहा "अच्छी बात यह है कि यह सिद्धांत समान शक्ति वाली बेंचों द्वारा दिए गए पूर्व निर्णयों का विस्तार नहीं करता".
6) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि केन्द्र सरकार और/या सक्षम प्राधिकारी को छह महीने की अवधि के भीतर सभी सूचना आयोगों को कानून के बुनियादी नियमों के अनुरूप और प्रभावी रूप से कार्यशील बनाने के लिए सभी अभ्यास और प्रक्रिया से संबंधित नियमों को तैयार करना करना चाहिए"गैरकानूनी और असंवैधानिक आदेशविभिन्न राज्यों और केन्द्र में अधिकतर आरटीआई अपीलकर्ताओं की एक समस्या है,” सी जै करीरा ने टिप्पणी की.
7) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (अर्थात अधिनियम 2005 की धारा के अंतर्गत नामित किए जाने वाले वरिष्ठ अधिकारीमुख्यतः कानून में एक डिग्री रखने वाले या कानून के क्षेत्र में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति होने चाहिए"इस बात का निहितार्थ यह है कि प्रथम अपील के स्तर पर मनमाने ढंग से फैसले के दिन भी जल्द ही खत्म हो जायेंगेकार्यकर्ता जीआर वोरा (grvora1@gmail.com,             9869195785      का ऐसा मानना है.
8) उच्चतम न्यायालय ने सभी सूचना आयोगों को अब से प्रत्येक दो सदस्यों की बेंच में कार्य करने का निर्देश दिया हैउनमें से एक न्यायिक सदस्य होना चाहिएजबकि दूसरा एकविशेषज्ञ सदस्यहोना चाहिएन्यायिक सदस्य कानून में डिग्री रखने वालान्यायिक तौर पर प्रशिक्षित मस्तिष्क और न्यायिक कार्यों को करने के लिए अनुभव युक्त वह व्यक्ति जो विज्ञापन की तिथि तक कम से कम बीस साल की अवधि के लिए कानून की प्रैक्टिस किया हुआ होना चाहिएऐसे वकीलों को सामाजिक कार्य का भी अनुभव होना चाहिएउच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इस पद हेतु वरीयता दी जायेगी.
9) केंद्र या राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त केवल वह व्यक्ति होगा जो या तो उच्च न्यायालय या भारत के उच्चतम न्यायालय का एक न्यायाधीश है या रह चुका है.
इन पदों में से किसी के लिए भी न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की परामर्श पर की जायेगीजो भी मामले में संभव हो.
10) दोनों स्तरों पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र के मामले में डीओपीटी और एक राज्य के मामले में संबंधित मंत्रालय द्वारा पैनल में शामिल व्यक्तियों के बीच से किया जाना चाहिएपैनल को विज्ञापन से पूर्व और एक तर्कसंगत आधार पर तैयार किया जाता है जैसा कि पहले दर्ज में किया गया है.
11) उच्चतम न्यायालय ने अनिवार्य कर दिया है कि नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित करने की एक निष्पक्ष और पारदर्शी विधि अपनाई जानी चाहिएचयन प्रक्रिया पद रिक्त होने से कम से कम तीन महीने पहले शुरू की जानी चाहिए.

आधार रेखा: आरटीआई कार्यकर्ताओं और जानकारी चाहने वालों के लिए एक अधिक दूरगामी और सकारात्मक विकास की कल्पना करना मुश्किल है!

कृष्णराज राव
            9821588114      

Saturday, September 15, 2012

उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक कैंसर सर्जन का खुला पत्रः


श्रीमान, गुटका पर पाबन्दी लगाने में यह टाल-मटोल क्यों?

सेवा में,
श्री अखिलेश यादव
माननीय मुख्य मंत्रीउत्तर प्रदेश
पांचवी मंजिललाल बहादुर शास्त्री भवन,
उत्तर प्रदेश सचिवालयलखनऊ।

15 सितंबर2012

प्रिय अखिलेश जी,
नमस्कार। आरंभ मेंमैं आपको उत्तर प्रदेश का सबसे युवा मुख्य मंत्रीऔर शायद पूरे देश में सबसे युवा मुख्य मंत्री बनने पर बधाई देता हूँ। पूरे राष्ट्र की निगाह आप पर टिकी हुई है। हमें पूरी उम्मीद है कि आपके शासन में उत्तर प्रदेश की सरकार प्रगतिशील और गतिशील रहेगी जो आपके नवयुवा व्यक्तित्व के अनुरूप है।
मैं विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देना चाहता हूँ। मैं मुम्बई स्थित टाटा मैमोरियल अस्पताल में जो कैंसर के निदान एवं उपचार के लिए एक प्रतिष्ठित अस्पताल हैएक कंसल्टेंट सर्जन हूँ। हरेक मंगलवार और बृहस्पतिवार को मैं दाखिला के लिए प्रतीक्षारत दर्जनों नए मरीजों की जांच करता हूँ। मैं उनके बीच यह देखकर बहुत दुखी हूँ कि एक बहुत बड़ी संख्या में लोग तम्बाकू के विभिन्न रूपों के प्रति अपनी लत के कारण मुँह या गले के कैंसर से पीड़ित हुए हैं।
ये मरीज पूरे भारत से विभिन्न राज्यों से आते हैं। लेकिन मैं अत्यंत दुख के साथ आपको सूचित करना चाहता हूँ कि उनमें में से एक बहुत बड़ा हिस्सा आपके राज्य से आता है। पिछले कुछ-एक सप्ताह मेंकैंसर के 20 मरीजों में से मरीज उत्तर प्रदेश के गौरवशाली राज्य से आए थे।
मुझे उनका परिचय देने दीजियेः
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1) श्रीमानयह उत्तर प्रदेश के जलगांव जिले के पास स्थित उरई से 28 साल के राजकमल प्रजापति हैं। वह गुटके और सिगरेट,दोनों की लत थी। उनकी जिंदगी की रक्षा करने के लिए कैंसर के फैलने को रोकने के लिए 28 अगस्त को उनकी जीभ का हिस्सा और उनके निचले जबड़े के अंदरूनी भागों को हटा दिया गया था।
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2) जौनपुर के 47 साल के राकेश रंजन सिंह एक स्कूल अध्यापक और दो बच्चों के पिता हैं। उनके गाल पर कैंसर पाया गया था। आज वह एक अंगुली तक डालने के लिए अपना पर्याप्त मुँह नहीं खोल पाते हैं। इसलिए वह अपने मुँह को खोलने के लिए एक चम्मच और अंगुलियां इस्तेमाल करते हुए मिक्सर में पिसी हुई दूध-रोटी खाते हैं। चूंकि उनका कैंसर उन्नत चरण में हैसर्जरी शायद उनकी जिंदगी की रक्षा करने के लिए नाकाफी हो। उन्होंने हमें बताया है कि पान चबाने वाले उनके एक दोस्त का कुछ-एक महीने पहले बनारस में कैंसर का ऑपरेशन हुआ था।
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3) उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के 51 साल के मोहम्मद अजाजूर रहमान लगातार कांपते रहते हैं। वह एक योग्य बिजली इंजीनियर हैं और नगरपालिका में काम करते हैं। मुँह और कैंसर में उन्नत चरण के कैंसर के बावजूदजो साफ दिखाई देता हैउनका एक दिन में10 पहलवान छाप बीड़ी पीना लगातार जारी हैऔर इस लत को त्याग पाने में अपनेआपको बेबस पाते हैं।
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4) 62 साल के सेवानिवृत्त मेजन जनार्दन लाल श्रीवास्तवमहाराजगंज जिले में लोक दल के जिला अध्यक्ष हैं। अगस्त, 2012 के मध्य मेंजब उनकी आवाज काफी कर्कश हो गई तब उनके मुँह के पिछले हिस्से में कैंसरजन्य ट्यूमर पाया गया था। फिर भी उन्होंने आदतन 5-6 सिगरेट रोजाना पीना जारी रखा हुआ है।
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5) 32 साल के दिनेश चंद शर्माउत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में बवार से आए हैं। वे एक मोटरसाइकिल मैकेनिक और गैराज मालिक हैंऔर खैनी तम्बाकू और चूने का मिश्रण खाने के शौकीन हैं। उन्होंने सिर्फ दो साल पहले ही इसको खाना शुरू किया थाऔर वो भी शाम को केवल 2-3 बार। दुर्भाग्यवशखैनी खाना शुरू करने महीने के बाद उनके गाल के अंदर एक ट्यूमर पैदा हो गया जहां वह तम्बाकू की चुटकी रखा करते थे। अब उनका कैंसर तेजी से उनकी जीभ में फैल रहा है और उन्हें साफ बोल पाने में बहुत कठिनाई हो रही है। उनकी जीभ को सर्जरी द्वारा हटाना एक विशिष्ट संभावना है जो डाक्टरों और सर्जनों की हमारी टीम के सामने खड़ी है।
महोदयमेरे सहकर्मी और मैं आपका ऐसे अनेक मरीजों से परिचय करवा सकते हैं जो हरेक सप्ताह उत्तर प्रदेश से टाटा मैमोरियल अस्पताल में आते हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि ये पांच काफी रहेंगे।
इस मामले की तात्कालिकता के प्रत्युत्तर मेंहाल ही में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए 13 राज्यों ने गुटके और पान मसाला पर पाबन्दी लगा दी है। इन राज्यों में दिल्लीमध्य प्रदेशकेरलबिहारमहाराष्ट्र,हिमाचल प्रदेशराजस्थानहरियाणाझारखंडछत्तीसगढ़गुजरातमिजोरम और पंजाबचंडीगढ़ संघशासित क्षेत्र शामिल हैं। निश्चित तौर पर वे सभी गलत नहीं हैं?
अगस्त, 2011 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानदंड प्राधिकरणद्वारा जारी अधिसूचना स्पष्ट है। इसमें कहा गया है, "उत्पाद में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कोई पदार्थ मौजूद नहीं होगाः तम्बाकू और निकोटीन को किसी भी खाद्य उत्पाद में संघटक के रूप में प्रयोग नहीं किया जाएगा।इसलिए सभी धुआं मुक्त तम्बाकू उत्पाद जैसे गुटकाखैनी आदि अपनेआप वर्जित हैं। यह खाद्य संरक्षा और मानदंड अधिनियम, 2006, और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानदंड प्राधिकरणस्वास्थ्य मंत्रालय के प्राधिकार से है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (NIHFW) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में भ्रामक नाम"धुआं मुक्त तम्बाकूसे भारत में लाखों लोगों को होने वाली प्राणाघातक बीमारियों को प्रमाण दिया गया है। कृपयाhttp://tiny.cc/Report-NIHFW-SC पर इस रिपोर्ट को पढ़िये।
श्रीमानआपके पास उत्तर प्रदेश में इस निषेधाज्ञा को लागू करने के लिए निर्विवाद शक्ति और जनादेश है। लेकिन मुझे यह देखकर दुख हो रहा है कि आपकी सरकार यह बहस करने में समय बर्बाद कर रही है कि क्या गुटका और पान मसाला को खाद्य पदार्थ कहा जा सकता है। गोदावत पान मसाला मुकदमे मेंमाननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि पान मसाला या गुटका खाद्य पदार्थ है। केरलबिहार और अन्य राज्यों के माननीय उच्च न्यायालयों ने भी स्वतंत्र रूप से यह सही ठहराया है कि गुटका और पान मसाला"खाद्य पदार्थहैं जैसा कि इस अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित है। निश्चित तौर पर विद्धान न्यायमूर्तिगण गलत नहीं हो सकते?
अगर उत्तर प्रदेश की सरकार अपने नागरिकों के बारे में इतनी कम परवाह करती हुई दिखाई देती है कि वह कानून के एक सुलझे हुए मामले पर अपने पैर घसीट रही है तो हमें बहुत दुख होगा।
अखिलेश जीजिस दौरान आपके FDA आयुक्त और अन्य दफ्तरशाह काल्पनिक मसलों पर कानूनी बहस में उलझे हुए हैंउस दौरान आपके राज्य में लोग मर रहे हैं। तम्बाकू उद्योग लाखों मासूम लोगों को अपना लतेड़ी बना रहा हैजिससे हजारों लोग सर्जरी के बाद पंगु और विकृत हो रहे हैंऔर सैकड़ों मारे जा रहे हैं। गुजरने वाले हरेक महीने के साथजिंदगियां खत्म हो रही हैं और परिवार बर्बाद हो रहे हैं।
मदोहयकृपया बिल्कुल विलंब नहीं कीजिये। गुटका और पान मसाला पर तुरंत पाबन्दी लगाइये।

सादर,
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डापंकज चतुर्वेदी,
कंसल्टेंट सर्जन,
टाटा मैमोरियल अस्पतालमुम्बई
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अधिक जानकारी के लिएकृपया संपर्क करेः अशीमा सरीनप्रोजेक्ट डायरेक्टर - VoTV - +91-8860786604
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